सरस्वती द्विवेदी
नई परंपरा की शुरुआत: अबू धाबी से आए इंदौर के दंपती ने कराया बेटी का उपनयन संस्कार
रामकृष्ण मुले, इंदौर। आमतौर पर पठन-पाठन शुरू करने से पहले बेटे का उपनयन संस्कार कराना हमारे यहां सामान्य बात है, लेकिन बेटी के उपनयन संस्कार के उदाहरण मुश्किल से मिलते हैं। इस बीच अबू धाबी (दुबई) में रहने वाले एक महाराष्ट्रीयन दंपती ने इंदौर आकर बेटे के साथ आठ साल की बेटी का उपनयन संस्कार कराया। इसके लिए उन्होंने दो साल तक शास्त्रों का अध्ययन कर इसके उदाहरण भी तलाशे। उनका मानना है कि यह संस्कार विद्या से जुड़ा है, जिसमें गायत्री माता का पूजन होता है। इसमें बेटे-बेटी के बीच भेदभाव उचित नहीं है।
मूलरूप से इंदौर निवासी यह दंपती हैं योगेश कुलकर्णी और माणिक कुलकर्णी, जिन्होंने आठ साल की बेटी शमिका का उपनयन संस्कार उसके जुड़वां भाई शनय के साथ कराया। अबू धाबी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर योगेश का कहना है कि चार साल पहले पुणे में एक आयोजन के दौरान उन्हें लड़कियों का उपनयन संस्कार होने की जानकारी मिली थी।
इसके बाद उन्होंने इस विषय के विद्वानों से चर्चा शुरू की। फिर ज्ञान प्रबोधनी और पुरातन पुस्तकों का अध्ययन किया। इसमें ऋषि पुत्री गार्गी और लोपमुद्रा का उल्लेख आता है, जिनका उपनयन संस्कार हुआ था। इसके बाद उन्होंने इंदौर आकर अपने गुरु से चर्चा की और सबकी सहमति से 11 जुलाई को उपनयन संस्कार कराया। माणिक के मुताबिक, इस संस्कार में बेटियों को शामिल न किया जाना हमारे लिए आश्चर्यजनक है, क्योंकि इसमें गायत्री मंत्र दिया जाता है। इस संस्कार के लिए बेटे-बेटी में भेदभाव उचित नहीं लगता।
45 साल में पहला अवसर
शुक्ल यजुर्वेदीय याज्ञवल्क्य संस्था के सदस्य और उपनयन संस्कार कराने वाले गुरु नीलकंठ बड़वे कहते हैं कि 45 वर्ष से मैं इस क्षेत्र में कार्य कर रहा हूं और किसी बालिका का उपनयन संस्कार देखने और कराने का यह मेरा पहला अनुभव है। हालांकि बालिकाओं के उपनयन संस्कार कराने के कुछ उदाहरण शास्त्रों में मिलते भी हैं। मेरे सामने जब यह बात आई तो चारों वेदों के जानकारों से चर्चा की। इसके बाद आयोजन को विधि-विधान से साकार रूप दिया।
सवाल
डॉ. नाना महाराज तराणेकर संस्थान के प्रमुख बाबा साहब तराणेकर बताते हैं कि 10 साल पहले जब इंदौर में हमने महिलाओं द्वारा गोष्ठी श्राद्ध करने की शुरआत की तो लोगों ने सवाल उठाए। हालांकि, महिलाओं द्वारा श्राद्ध के प्रमाण भी शास्त्रों में मिलते हैं। अब इंदौर के साथ महाराष्ट्र और देश के विभिन्न स्थानों पर महिलाओं द्वारा श्राद्ध किए जाते हैं। बालिकाओं के उपनयन संस्कार के उदाहरण वेदकाल में मिलते हैं, लेकिन महाभारतकाल के बाद यह परंपरा विलुप्त होती गई। महाराष्ट्र के साकोरी में गोदावरी माता की कई शिष्य वेदों का अध्ययन करती हैं और उनके द्वारा यह संस्कार किया जाता है।
आर्य समाज देता है अनुमति
आर्य समाज मंदिर के मंत्री मनोज सोनी बताते हैं कि सभी सोलह संस्कार लड़के और लड़कियों के लिए हैं। बालिकाओं के उपनयन संस्कार की अनुमति आर्य समाज देता है, लेकिन अब कई जगह बालिकाओं को जनेऊ पहनने से दूर कर दिया गया है। जनेऊ के तीन धागे माता-पिता, राष्ट्र और धर्म पालन के प्रतीक हैं, जिस पर दोनों का समान अधिकार है।
यह है उपनयन संस्कार
हिंदू धर्म में सोलह संस्कारों में से उपनयन संस्कार का स्थान दसवां है। माना जाता है कि इस संस्कार से बालक के भौतिक व आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है। इस संस्कार में बटुकों को गायत्री मंत्र की दीक्षा दी जाती है और यज्ञोपवीत धारण कराया जाता है। शिक्षा की शुरुआत के समय यह संस्कार कराने की परंपरा है।